उत्सव के रंग...

भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। "उत्सव के रंग" ब्लॉग का उद्देश्य पर्व-त्यौहार, संस्कृति और उसके लोकरंजक तत्वों को पेश करने के साथ-साथ इनमें निहित जीवन-मूल्यों का अहसास कराना है. आज त्यौहारों की भावना गौड़ हो गई है, दिखावटीपन प्रमुख हो गया है. ऐसे में जरुरत है कि हम अपनी उत्सवी परंपरा की मूल भावनाओं की ओर लौटें. इन पारंपरिक त्यौहारों के अलावा आजकल हर दिन कोई न कोई 'डे' मनाया जाता है. हमारी कोशिश होगी कि ऐसे विशिष्ट दिवसों के बारे में भी इस ब्लॉग पर जानकारी दी जा सके. इस उत्सवी परंपरा में गद्य व पद्य दोनों तरह की रचनाएँ शामिल होंगीं !- कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव (ब्लॉग संयोजक)

रविवार, 27 सितंबर 2009

अन्याय पर न्याय की विजय का प्रतीक है दशहरा

दशहरा पर्व भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा बेसब्री के साथ इंतजार किये जाने वाला त्यौहार है। दशहरा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द संयोजन "दश" व "हरा" से हुयी है, जिसका अर्थ भगवान राम द्वारा रावण के दस सिरों को काटने व तत्पश्चात रावण की मृत्यु रूप मंे राक्षस राज के आंतक की समाप्ति से है। यही कारण है कि इस दिन को विजयदशमी अर्थात अन्याय पर न्याय की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। दशहरे से पूर्व हर वर्ष शारदीय नवरात्र के समय मातृरूपिणी देवी नवधान्य सहित पृथ्वी पर अवतरित होती हैं- क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री रूप में मांँ दुर्गा की लगातार नौ दिनांे तक पूजा होती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के अंतिम दिन भगवान राम ने चंडी पूजा के रूप में माँ दुर्गा की उपासना की थी और मांँ ने उन्हें युद्ध में विजय का आशीर्वाद दिया था। इसके अगले ही दिन दशमी को भगवान राम ने रावण का अंत कर उस पर विजय पायी, तभी से शारदीय नवरात्र के बाद दशमी को विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है और आज भी प्रतीकात्मक रूप में रावण-पुतला का दहन कर अन्याय पर न्याय के विजय की उद्घोषणा की जाती हेै।

दशहरे की परम्परा भगवान राम द्वारा त्रेतायुग में रावण के वध से भले ही आरम्भ हुई हो, पर द्वापरयुग में महाभारत का प्रसिद्ध युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था। पर विजयदशमी सिर्फ इस बात का प्रतीक नहीं है कि अन्याय पर न्याय अथवा बुराई पर अच्छाई की विजय हुई थी बल्कि यह बुराई में भी अच्छाई ढूँढ़ने का दिन होता है।

5 टिप्‍पणियां:

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

विजयदशमी की शुभकामनायें. जीवन के हर मोड़ पर आप विजयी हों और अन्याय की पराजय हो.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

खूबसूरत लेख. दशहरा पर्व की शुभकामनायें.

Akanksha Yadav ने कहा…

शारदीय नवरात्र....फिर दशहरा...फिर दीपावली...एक लम्बी परंपरा...यही हमारी समृद्ध संस्कृति है...आइये इसका भरपूर लुत्फ़ उठायें....शुभकामनायें !!

Shyama ने कहा…

विजयदशमी पर सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति...बधाई.

बेनामी ने कहा…

विजयादशमी की शुभकामनाएँ.

बहुत अच्छा आलेख, बधाई।