उत्सव के रंग...

भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। "उत्सव के रंग" ब्लॉग का उद्देश्य पर्व-त्यौहार, संस्कृति और उसके लोकरंजक तत्वों को पेश करने के साथ-साथ इनमें निहित जीवन-मूल्यों का अहसास कराना है. आज त्यौहारों की भावना गौड़ हो गई है, दिखावटीपन प्रमुख हो गया है. ऐसे में जरुरत है कि हम अपनी उत्सवी परंपरा की मूल भावनाओं की ओर लौटें. इन पारंपरिक त्यौहारों के अलावा आजकल हर दिन कोई न कोई 'डे' मनाया जाता है. हमारी कोशिश होगी कि ऐसे विशिष्ट दिवसों के बारे में भी इस ब्लॉग पर जानकारी दी जा सके. इस उत्सवी परंपरा में गद्य व पद्य दोनों तरह की रचनाएँ शामिल होंगीं !- कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव (ब्लॉग संयोजक)

गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

विश्व पृथ्वी दिवस : आज धरती माँ की सोचें

आज 22 अप्रैल को विश्व पृथ्वी दिवस है. वैसे आजकल हर दिन का फैशन है, पर पृथ्वी दिवस की महत्ता इसलिए बढ़ जाती है कि यह पृथ्वी और पर्यावरण के बारे में लोगों को जागरूक करता है. यदि पृथ्वी ही नहीं रहेगी तो फिर जीवन का अस्तित्व ही नहीं रहेगा. हम कितना भी विकास कर लें, पर पर्यावरण की सुरक्षा को ललकार किया गया कोई भी कार्य समूची मानवता को खतरे में डाल सकता है. सर्वप्रथम पृथ्वी दिवस का विचार अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के द्वारा 1970 में पर्यावरण शिक्षा के अभियान रूप में की गयी, पर धीरे-धीरे यह पूरे विश्व में प्रचारित हो गया. आज हम अपने आसपास प्रकृति को न सिर्फ नुकसान पहुंचा रहे हैं, बल्कि भावी पीढ़ियों से प्रकृति को दूर भी कर रहे हैं. ऐसे परिवेश में कल वास्तविक पार्क की बजाय हमें ई-पार्क देखने को मिले, तो कोई बड़ी बात नहीं.

2 टिप्‍पणियां:

KK Yadav ने कहा…

सही चेताया आपने...सभी को इस ओर सोचने की जरुरत है.

Unknown ने कहा…

ऐसे परिवेश में कल वास्तविक पार्क की बजाय हमें ई-पार्क देखने को मिले, तो कोई बड़ी बात नहीं...Sahi kaha apne.