अप्रैल फूल दिवस पश्चिमी देशों में हर साल पहली अप्रैल को मनाया जाता है. विकिपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार कभी-कभी ऑल फूल्स डे के रूप में जाना जाने वाला यह दिन, 1 अप्रैल एक आधिकारिक छुट्टी का दिन नहीं है लेकिन इसे व्यापक रूप से एक ऐसे दिन के रूप में जाना और मनाया जाता है जब एक दूसरे के साथ व्यावाहारिक मजाक और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें की जाती हैं. इस दिन दोस्तों, परिजनों, शिक्षकों, पड़ोसियों, सहकर्मियों आदि के साथ अनेक प्रकार की शरारतपूर्ण हरकतें और अन्य व्यावहारिक मजाक किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य होता है बेवकूफ और अनाड़ी लोगों को शर्मिंदा करना.
पारंपरिक तौर पर कुछ देशों जैसे न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के मजाक केवल दोपहर तक ही किये जाते हैं, और अगर कोई दोपहर के बाद किसी तरह की कोशिश करता है तो उसे "अप्रैल फूल" कहा जाता है. ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि ब्रिटेन के अखबार जो अप्रैल फूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा सिर्फ पहले (सुबह के) एडिशन के लिए ही करते हैं. इसके अलावा फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान रूस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है. 1 अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहला दर्ज किया गया संबंध चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में पाया जाता है.
रोम, मध्य यूरोप और हिंदू समुदाय में 20 मार्च से लेकर 5 अप्रैल तक नया साल मनाया जाता है। इस दौरान बसंत ऋतु होती है। जूनियल कैलेंडर ने एक अप्रैल से नया साल माना जोकि सन् 1582 तक मनाया गया। इसके बाद पोप ग्रेगी 13वें ने ग्रेगियन कैलेंडर बनाया। इसके अनुसार एक जनवरी को नया साल घोषित किया गया। कई देशों ने सन 1660 में ग्रेगीयन कैलेंडर स्वीकार कर लिया।
जर्मनी, दनिश और नार्वे में सन् 1700 और इंग्लैंड में 1759 में एक जनवरी को नए साल के रूप में स्वीकार किया गया। फ्रांस के लोगों को लगा की साल का पहला दिन बदलकर उन्हें मूर्ख बनाया गया है और पुराने कैलेंडर के नववर्ष को उन्होंने मूर्ख दिवस घोषित कर दिया।
अप्रैल फूल दिवस की एक बानगी देखें कि जीमेल (gmail) के 1 अप्रैल को लांच होने को एक मज़ाक समझा गया था, क्योंकि गूगल पारंपरिक तौर पर हर 1 अप्रैल को अप्रैल फूल्स डे के होक्स जारी करती है, और घोषित किया गया 1 जीबी का ऑनलाइन स्टोरेज उस समय मौजूदा ऑनलाइन ईमेल सेवा के लिए बहुत ही ज्यादा था .
अब तो पूरी दुनिया में ही अप्रैल-फूल का प्रचलन बढ़ चला है, सो भारत भी अछूता नहीं. हर कोई एक दिन पहले से ही तैयारी करने लगता है कि किसे-किसे मूर्ख बनाना है, और कैसे बनाना है.
फ़िलहाल अप्रैल फूल दिवस का लुत्फ़ उठायें, पर किसी कि भावनाएं आहत करने से बचें. बकौल हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र यादव इस दिन हार्ट पेशेंट का खास ख्याल रखें। उन्होंने कहा कि कई बार गंभीर मजाक से भावनाओं के उतार-चढ़ाव के कारण कोरोनरी में अवरोध पैदा होता है। यदि कोरोनरी धमनियों में पहले से ही समस्या हो तो समस्या गंभीर हो जाती है। इस स्थिति में धमनियों के अंदर की चिकनी सतह खुरदरी हो जाती है। इससे वहां पर कोलेस्ट्रॉल सरीखा तत्व जमा होने लगता है। खून जमना शुरू हो जाता है। यह हृदय के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है।किसी का मजाक उड़ाने की बजाय मजाक-मजाक में नई सीख सिखाएं तो इस दिन का भरपूर आनंद लिया जा सकता है.
पारंपरिक तौर पर कुछ देशों जैसे न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के मजाक केवल दोपहर तक ही किये जाते हैं, और अगर कोई दोपहर के बाद किसी तरह की कोशिश करता है तो उसे "अप्रैल फूल" कहा जाता है. ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि ब्रिटेन के अखबार जो अप्रैल फूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा सिर्फ पहले (सुबह के) एडिशन के लिए ही करते हैं. इसके अलावा फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान रूस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है. 1 अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहला दर्ज किया गया संबंध चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में पाया जाता है.
रोम, मध्य यूरोप और हिंदू समुदाय में 20 मार्च से लेकर 5 अप्रैल तक नया साल मनाया जाता है। इस दौरान बसंत ऋतु होती है। जूनियल कैलेंडर ने एक अप्रैल से नया साल माना जोकि सन् 1582 तक मनाया गया। इसके बाद पोप ग्रेगी 13वें ने ग्रेगियन कैलेंडर बनाया। इसके अनुसार एक जनवरी को नया साल घोषित किया गया। कई देशों ने सन 1660 में ग्रेगीयन कैलेंडर स्वीकार कर लिया।
जर्मनी, दनिश और नार्वे में सन् 1700 और इंग्लैंड में 1759 में एक जनवरी को नए साल के रूप में स्वीकार किया गया। फ्रांस के लोगों को लगा की साल का पहला दिन बदलकर उन्हें मूर्ख बनाया गया है और पुराने कैलेंडर के नववर्ष को उन्होंने मूर्ख दिवस घोषित कर दिया।
अप्रैल फूल दिवस की एक बानगी देखें कि जीमेल (gmail) के 1 अप्रैल को लांच होने को एक मज़ाक समझा गया था, क्योंकि गूगल पारंपरिक तौर पर हर 1 अप्रैल को अप्रैल फूल्स डे के होक्स जारी करती है, और घोषित किया गया 1 जीबी का ऑनलाइन स्टोरेज उस समय मौजूदा ऑनलाइन ईमेल सेवा के लिए बहुत ही ज्यादा था .
अब तो पूरी दुनिया में ही अप्रैल-फूल का प्रचलन बढ़ चला है, सो भारत भी अछूता नहीं. हर कोई एक दिन पहले से ही तैयारी करने लगता है कि किसे-किसे मूर्ख बनाना है, और कैसे बनाना है.
फ़िलहाल अप्रैल फूल दिवस का लुत्फ़ उठायें, पर किसी कि भावनाएं आहत करने से बचें. बकौल हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र यादव इस दिन हार्ट पेशेंट का खास ख्याल रखें। उन्होंने कहा कि कई बार गंभीर मजाक से भावनाओं के उतार-चढ़ाव के कारण कोरोनरी में अवरोध पैदा होता है। यदि कोरोनरी धमनियों में पहले से ही समस्या हो तो समस्या गंभीर हो जाती है। इस स्थिति में धमनियों के अंदर की चिकनी सतह खुरदरी हो जाती है। इससे वहां पर कोलेस्ट्रॉल सरीखा तत्व जमा होने लगता है। खून जमना शुरू हो जाता है। यह हृदय के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है।किसी का मजाक उड़ाने की बजाय मजाक-मजाक में नई सीख सिखाएं तो इस दिन का भरपूर आनंद लिया जा सकता है.
7 टिप्पणियां:
विशिष्ट दिवस की उम्दा जानकारी...
रोचक जानकारी...आभार.
रोचक जानकारी...आभार.
मोहतरमा आकांक्षा यादव जी ! आपकी पोस्ट काफी जानकारी भरी है .
आभार इस रोचक व ज्ञानवर्द्धक जानकारी हेतु...
Rochak jankari ...
"हम में अधिकतर लोग तब प्रार्थना करते हैं, जबकि हम किसी भयानक मुसीबत या समस्या में फंस जाते हैं| या जब हम या हमारा कोई किसी भयंकर बीमारी या मुसीबत या दुर्घटना से जूझ रहा होता है तो हमारे अन्तर्मन से स्वत: ही प्रार्थना निकलती हैं| क्या इसका मतलब यह है कि हमें प्रार्थना करने के लिये किसी मुसीबत या अनहोनी के घटित होने का इन्तजार करना चाहिए!"
"स्वस्थ, समृद्ध, सफल, शान्त और आनन्दमय जीवन हर किसी का नैसर्गिक (प्राकृतिक) एवं जन्मजात अधिकार है| आप इससे क्यों वंचित हैं?"
एक सही ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ का चयन और उसका अनुसरण आपके सम्पूर्ण जीवन को बदलने में सक्षम है| जरूरत है तो बस इतनी सी कि आप एक सही और पहला कदम, सही दिशा में बढाने का साहस करें|
"सफल और परिणाम दायी अर्थात ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ का नाम ही- "कारगर प्रार्थना" है! जिसका किसी धर्म या सम्प्रदाय से कोई सम्बन्ध नहीं है| यह प्रार्थना तो जीवन की भलाई और जीवन के उत्थान के लिये है| किसी भी धर्म में इसकी मनाही नहीं है|"
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