उत्सव के रंग...

भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। "उत्सव के रंग" ब्लॉग का उद्देश्य पर्व-त्यौहार, संस्कृति और उसके लोकरंजक तत्वों को पेश करने के साथ-साथ इनमें निहित जीवन-मूल्यों का अहसास कराना है. आज त्यौहारों की भावना गौड़ हो गई है, दिखावटीपन प्रमुख हो गया है. ऐसे में जरुरत है कि हम अपनी उत्सवी परंपरा की मूल भावनाओं की ओर लौटें. इन पारंपरिक त्यौहारों के अलावा आजकल हर दिन कोई न कोई 'डे' मनाया जाता है. हमारी कोशिश होगी कि ऐसे विशिष्ट दिवसों के बारे में भी इस ब्लॉग पर जानकारी दी जा सके. इस उत्सवी परंपरा में गद्य व पद्य दोनों तरह की रचनाएँ शामिल होंगीं !- कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव (ब्लॉग संयोजक)

सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

सोमवती अमावस्या: पीपल की परिक्रमा से मिलेगा अक्षय फल

आज (15 अक्तूबर, 2012) सोमवती अमावस्या का त्यौहार है. इस दिन पीपल के पेड़ के नीचे भगवन विष्णु और लक्ष्मी की पूजा करने से अक्षय धन और दांपत्य सुख की प्राप्ति बताई जाती है. सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। सोमवार चन्द्र को समर्पित दिन है। चन्द्र को अध्यात्म में मन का कारक माना गया है। इस दिन अमावस्या अर्थात बिना चन्द्र की अन्धेरी रात के पड़ने का अर्थ ही है कि मन सम्बन्धी दोषों के समाधान के लिये यह उत्तम दिन है। चूंकि शास्त्रों में चन्द्रमा को ही समस्त दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों का कारक माना गया है, अत: पूरे वर्ष में सामान्यत: एक या दो बार पड़ने वाले इस दिन का बहुत ज्यादा महत्व है। महाभारत में भीष्म पितामह युधिष्ठिर को इस दिन के महत्व के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस दिन जो मनुष्य किसी नदी में स्नान करेगा, उसे समस्त कष्टों से मुक्ति मिलेगी।
 
सोमवती अमावस्या के सम्बन्ध में बहुत से प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। ‘निर्णय सिन्धु’ में इसके महत्व को विस्तार से बताया गया है। ग्रंथों में उल्लेख है कि इस दिन ‘अश्वत्थ’ अर्थात पीपल के वृक्ष की पूजा करने से पति के स्वास्थ्य में सुधार, न्यायिक समस्याओं से मुक्ति, आर्थिक परेशानियों का समाधान और अन्य कई समस्याओं का समाधान होता है। शास्त्रों में वर्णित है कि पीपल के पेड़ का वास्तविक नाम अश्वत्थ है और इसे विष्णु स्वरूप माना जाता है। ‘पिप्पलाद’ ऋ षि ने इस पेड़ के नीचे तपस्या करके शनिदेव को प्रसन्न किया था, अत: इस पेड़ का नाम पीपल पड़ा। चूंकि 23 तारीख को शनि की स्थिति सामान्य से अच्छी है, अत: पीपल के पेड़ की विधिवत पूजा करने से अवश्य लाभ होगा। शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन मौन रह कर अपने इष्ट देव के मंत्रों का जाप करने और नदी या नदियों के संगम पर स्नान करने से पुण्य मिलता है और जीवन में आ रही समस्याओं का समाधान होता है।
 
सभी समस्याओं का होगा समाधान23 जनवरी को पड़ने वाली सोमवती अमवस्या का बहुत महत्व है, क्योंकि इस दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्र है और दिन के उत्तरार्ध में मकर राशि में लग्नस्थ होने से यह दिन लगभग सभी कष्टों के समधान का दिन बन रहा है। मकर राशि का स्वामी शनि होता है, जो कि अभी गोचर में उच्च का होकर तुला राशि में दशमस्थ है। इसी दिन दोपहर बाद सर्वार्थ सिद्धि योग भी है। स्पष्ट है कि इस दिन स्वास्थ्य, शिक्षा,कानूनी विवाद,आर्थिक परेशानियों और पति-पत्नी सम्बन्धी विवाद के समाधान हेतु किये गये उपाय अवश्य सफल होंगे। वे जातक जिनकी कुंडली में शनि नीच का होकर मेष राशि में है और जीवन में व्यावसायिक परेशानियों से जूझ रहे हैं, वे आज के दिन पीपल के पेड़ पर तिल के तेल का दीपक जला कर रखें और ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का पेड़ के नीचे ही बैठ कर 108 जाप करें तो लाभ होगा।
 
यदि पति का स्वास्थ्य ठीक नहीं है व घर में मांगलिक कार्य भी नहीं हो रहे हों तो पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमा या शारीरिक योग्यता के अनुसार परिक्रमा करते हुए सूत का धागा लपेटें। ‘नारायणाय नम:’ मंत्र का जाप करें। यदि किसी असाध्य बीमारी से ग्रस्त हैं या किसी पारिवारिक विवाद से परेशान हैं तो कोई भी पारिवारिक सदस्य संकल्प लेकर पीपल के पेड़ की 108 प्रदक्षिणा यानी चक्कर लगाये और प्रत्येक प्रदक्षिणा के पश्चात कोई भी एक मिठाई या मेवा रखे। केवल एक सोमवती अमावस्या को ही इस प्रक्रिया को करने से लाभ होता है। इस प्रक्रिया को कम से कम तीन सोमवती अमावस्या तक करने से समस्या से मुक्ति मिलती है। इस प्रक्रिया से पितृ दोष का भी समधान होता है। चूंकि सोमवार,शिव जी को समर्पित दिन है अत: सोमवती अमावस्या को शिवजी का अभिषेक या रुद्राभिषेक करने से पारिवारिक शांति मिलती है।
 
एक विधान यह भी
सोमवती अमावस्या के सम्बन्ध में शास्त्रों में एक कथा भी मिलती है, जिसके अनुसार एक कन्या की कुंडली मे विवाह योग नहीं होता। एक संत उसे धोबी के घर में जाकर सेवा करने से विवाह हो जाने की बात कहते हैं। वह कन्या ऐसा ही करती है और उसका विवाह हो जाता है। इस कथा के कारण ही यहां विधान भी है कि सोमवती अमावस्या के दिन अपने मनोरथों की पूर्ति के लिये लोग धोबी परिवार को भेंट इत्यादि देते हैं।

-डॉ. दत्तात्रेय होस्केरे

3 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

धन्यवाद

क्या आप Facebook पर अनचाही Photo Tagging से परेशान हैं?

kunwarji's ने कहा…

बहुत ही सुन्दर और लाभकारी जानकारी भरी पोस्ट....

आभार!

कुँवर जी,

Shahroz ने कहा…

जानकारीप्रद आलेख...उत्सव के रंग पर काफी जानकारियां हैं.