उत्सव के रंग...

भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। "उत्सव के रंग" ब्लॉग का उद्देश्य पर्व-त्यौहार, संस्कृति और उसके लोकरंजक तत्वों को पेश करने के साथ-साथ इनमें निहित जीवन-मूल्यों का अहसास कराना है. आज त्यौहारों की भावना गौड़ हो गई है, दिखावटीपन प्रमुख हो गया है. ऐसे में जरुरत है कि हम अपनी उत्सवी परंपरा की मूल भावनाओं की ओर लौटें. इन पारंपरिक त्यौहारों के अलावा आजकल हर दिन कोई न कोई 'डे' मनाया जाता है. हमारी कोशिश होगी कि ऐसे विशिष्ट दिवसों के बारे में भी इस ब्लॉग पर जानकारी दी जा सके. इस उत्सवी परंपरा में गद्य व पद्य दोनों तरह की रचनाएँ शामिल होंगीं !- कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव (ब्लॉग संयोजक)

बुधवार, 31 अगस्त 2011

मुहब्बत व प्यार एवं कौमी मकजहती और खुशी का इजहार है ईद

यूं तो रमजान का पूरा महीना रहमत, मगफिरत और नर्क से छुटकारे का है, लेकिन जो लोग शराबी हैं, माता-पिता का कहना नहीं मानते हैं, आपस में लड़ते हैं और दिल में कीना रखते हैं, उनकी इस महीने में भी मगफिरत व बख्शिस नहीं होती है। हर्ष के मैदान में रोजेदारों को पुकार कर कहा जाता है कि उठो और जन्नत के आठ दरवाजों में से एक खास दरवाजे [रैय्यान] से जन्नत में दाखिल हो जाओ। यह वह दरवाजा है जिसमें मगफिरत व बख्शिस नहीं दिए जाने वाले प्रवेश नहीं कर सकते हैं।

रमजान वो महीना है जिसमें इंसानों की सारी मनुष्यता के लिए हिदायत बनाकर रौशनी हासिल करने के लिए कुरान नाजील फरमाया गया है। कुरान वो किताब है जिसके द्वारा इंसान सच और झूठ में, न्याय और अन्याय में, हक व बातिल में, कुर्फ में इमान में, इंसानियत और शैतानियत में फर्क करना सीखते हैं। रमजान के अंदर अल्लाह की तरफ से तमाम मुसलमानों के ऊपर रोजा फर्ज किया गया है। कुराण कहता है-ऐ इमान वालों, तुम पर जिस तरह रोजा फर्ज किया गया है ठीक उसी तरह उन्मतों पर भी रोजा फरमाया गया है ताकि तुम परहेजगार बन सको। रमजान का सबसे अहम अमल रोजा है। सूर्योदय के पूर्व से सूर्यास्त होने तक अपने बनाने वाले अल्लाह की एक इच्छा के अनुसार जायज खाने-पीने से और दिल की ख्वाइश से बच-बचाकर इंसान यह अभ्यास करता है कि वे पूरी जिंदगी में अपने अल्लाह के कहने के मुताबिक ही चले।

रमजान में रोजे के साथ-साथ रात में मुसलमान रोजाना तराबीह की बीस रकत नमाज में पूरा कुरान सुनते हैं। ये दुनिया भर की हर मज्जिद में अमल सुन्नत जानकर अदा की जाती है। इसकी फजीलत हदीस में आई है कि जो ईमान व ऐहतसाब के साथ ये नमाज तरबीह की अदा करेगा उसके पिछले तमाम गुनाहों को माफ कर दिया जाता है।

आमतौर पर आम मुसलमान ईद की पूर्व रात को चांद की रात के नाम से जानते हैं लेकिन कुरान में इस रात की बड़ी अहमियत होती है। हदीस के अनुसार इसका अर्थ है कि फरिश्ते आसमान पर इस रात को बातें करते हैं कि लैलतुल जाइजा [इनाम की रात] यानी पूरे रमजान जो अल्लाह के बंदों ने दिनों में रोजा रखकर और रातों में तराबीह पढ़कर अपने अल्लाह का हुकूम पूरा किया है, आज की रात उन्हें इनाम और बदले में अल्लाहताला उनकी बख्शिस व मगफिरत फरमाता है।

ईद अरबी शब्द है जिसका अर्थ है कि बार-बार लौटकर आने वाली खुशी। ईद में दो रकत नमाज वाजिब शुक्राने के तौर पर तमाम मुसलमान अदा करते हैं। वैसे मुसलमान से अल्लाहताला खुश हो जाते हैं और रमजान के दौरान अच्छी तरह नमाज अदा करने वाले रोजदार को अल्लाहताला से रजा व खुशी हासिल हो जाती है। इसी शुक्राने में ईद की नमाज अदा की जाती है। ईद वाले दिन सदक-ए-फितर हर साहिबे हैसियत मुसलमानों पर वाजिब है। अपने तमाम घर वालों की तरफ से पौने दो किलो गेहूं या उसकी कीमत के बराबर रकम गरीब, मिस्कीन, नादार में तकसीत कर दें ताकि हर मुसलमान खुशी और मुसर्रत के साथ ईद की खुशियों में अपना हिस्सा भी हासिल कर सकें। ईद के दिन आसमान में फरिश्ते आपस में बातें करते है कि अल्लाह ताला ने सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत के साथ क्या मामला किया? उन्हें जबाव मिलता है, मेहनत करने वाले को उनकी पूरी-पूरी मजदूरी दे दी जाती है जो अल्लाह की रजा व खुशनुदी की शक्ल में उस दिन लोगों को अता की जाती है।

पूरे महीने के रोजे के बाद अल्लाह का शुक्र अदा करने और अपनी अदा अजरत अल्लाहताला से लेने के लिए ईद की नमाज अदा की जाती है क्योंकि अल्लाह ईद के दिन सारे रोजदारों की मगफिरत फरमाकर निजात का परवाना अताए फरमाता है। ईद की नमाज हमारे रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत है और हमसब पर वाजिब है। इस दिन एक दूसरे से मुहब्बत व प्यार एवं कौमी मकजहती और खुशी का इजहार किया जाता है।

[प्रस्तुति-ब्रजेश नंदन माधुर्य]

सोमवार, 22 अगस्त 2011

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयाँ

श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरापहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जाता है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।

श्रीकृष्णजन्माष्टमीका व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। इस दिन उपवास रखें तथा अन्न का सेवन न करें। समाज के सभी वर्ग भगवान श्रीकृष्ण के प्रादुर्भाव-महोत्सव को अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार उत्साहपूर्वक मनाएं। गौतमीतंत्रमें यह निर्देश है-

उपवास: प्रकर्तव्योन भोक्तव्यंकदाचन।
कृष्णजन्मदिनेयस्तुभुड्क्तेसतुनराधम:।
निवसेन्नरकेघोरेयावदाभूतसम्प्लवम्॥

अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है।

धार्मिक गृहस्थोंके घर के पूजागृह तथा मंदिरों में श्रीकृष्ण-लीला की झांकियां सजाई जाती हैं। भगवान के श्रीविग्रहका शृंगार करके उसे झूला झुलाया जाता है। श्रद्धालु स्त्री-पुरुष मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं। अर्धरात्रिके समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है। तदोपरांत श्रीविग्रहका षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। कुछ लोग रात के बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरूप खीरा चीर कर बालगोपाल की आविर्भाव-लीला करते हैं।

धर्मग्रंथों में जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण का विधान भी बताया गया है। कृष्णाष्टमी की रात में भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मंत्र

ॐनमोभगवतेवासुदेवायका जाप अथवा श्रीकृष्णावतारकी कथा का श्रवण करें। श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए रात भर जगने से उनका सामीप्य तथा अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती, कपूर आदि से आरती करें तथा भगवान को भोग में निवेदित खाद्य पदार्थो को प्रसाद के रूप में वितरित करके अंत में स्वयं भी उसको ग्रहण करें।

आज जन्माष्टमी का व्रत करने वाले वैष्णव प्रात:काल नित्यकर्मो से निवृत्त हो जाने के बाद इस प्रकार संकल्प करें-

ॐविष्णुíवष्णुíवष्णु:अद्य शर्वरीनामसंवत्सरेसूर्येदक्षिणायनेवर्षतरैभाद्रपदमासेकृष्णपक्षेश्रीकृष्णजन्माष्टम्यांतिथौभौमवासरेअमुकनामाहं(अमुक की जगह अपना नाम बोलें) मम चतुर्वर्गसिद्धिद्वारा श्रीकृष्णदेवप्रीतयेजन्माष्टमीव्रताङ्गत्वेनश्रीकृष्णदेवस्ययथामिलितोपचारै:पूजनंकरिष्ये।

वैसे तो जन्माष्टमी के व्रत में पूरे दिन उपवास रखने का नियम है, परंतु इसमें असमर्थ फलाहार कर सकते हैं।

भविष्यपुराणके जन्माष्टमीव्रत-माहात्म्यमें यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सवकिया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराजके अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकत्र्ताभगवत्कृपाका भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं। दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है। गृहस्थोंको पूर्वोक्त द्वादशाक्षरमंत्र से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ इस मंत्र का अधिकाधिक जप करें-

कृष्णायवासुदेवायहरयेपरमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशायगोविन्दायनमोनम:॥

उपर्युक्त मंत्र का नित्य जाप करते हुए सच्चिदानंदघनश्रीकृष्ण की आराधना करें। इससे परिवार में खुशियां वापस लौट आएंगी। घर में विवाद और विघटन दूर होगा।

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्तिहटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे।

व्रजमण्डलमें श्रीकृष्णाष्टमीके दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्रीविग्रहपर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासीउसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्ययंत्रोंसे मंगलध्वनिबजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है।

साभार : विकिपीडिया

!! कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को बधाइयाँ !!