उत्सव के रंग...

भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। "उत्सव के रंग" ब्लॉग का उद्देश्य पर्व-त्यौहार, संस्कृति और उसके लोकरंजक तत्वों को पेश करने के साथ-साथ इनमें निहित जीवन-मूल्यों का अहसास कराना है. आज त्यौहारों की भावना गौड़ हो गई है, दिखावटीपन प्रमुख हो गया है. ऐसे में जरुरत है कि हम अपनी उत्सवी परंपरा की मूल भावनाओं की ओर लौटें. इन पारंपरिक त्यौहारों के अलावा आजकल हर दिन कोई न कोई 'डे' मनाया जाता है. हमारी कोशिश होगी कि ऐसे विशिष्ट दिवसों के बारे में भी इस ब्लॉग पर जानकारी दी जा सके. इस उत्सवी परंपरा में गद्य व पद्य दोनों तरह की रचनाएँ शामिल होंगीं !- कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव (ब्लॉग संयोजक)

रविवार, 25 दिसंबर 2011

प्‍यार व भाईचारे का संदेश देता क्रिसमस पर्व

क्रिसमस शब्‍द का जन्‍म क्राईस्‍टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्‍टस् मास’ शब्‍द से हुआ है। ऐसा अनुमान है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ई. में मनाया गया था। यह प्रभु के पुत्र जीसस क्राइस्‍ट के जन्‍म दिन को याद करने के लिए पूरे विश्‍व में 25 दिसम्‍बर को मनाया जाता है यह ईसाइयों के सबसे महत्‍वपूर्ण त्‍यौहारों में से एक है। इस दिन भारत व अधिकांश अन्‍य देशों में सार्वजनिक अवकाश रहता है।

क्राइस्‍ट के जन्‍म के संबंध में नए टेस्‍टामेंट के अनुसार व्‍यापक रूप से स्‍वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्‍म देगी तथा बच्‍चे का नाम जीसस रखा जाएगा। व‍ह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्‍य की कोई सीमाएं नहीं होंगी।

देवदूत गैब्रियल, जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्‍चे को जन्‍म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका परित्‍याग न करे। जिस रात को जीसस का जन्‍म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्‍ते में थे। उन्‍होंने एक अस्‍तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्‍म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्‍म हुआ।

क्रिसमस समारोह अर्धरात्रि के समय के बाद, जिसे समारोह का एक अनिवार्य भाग माना जाता है, शुरू होते हैं। इसके बाद मनोरंजन किया जाता है। सुंदर रंगीन वस्‍त्र पहने बच्‍चे ड्रम्‍स, झांझ-मंजीरों के आर्केस्‍ट्रा के साथ चमकीली छडियां लिए हुए सामूहिक नृत्‍य करते हैं।

सेंट बेनेडिक्‍ट उर्फ सान्‍ता क्‍लाज़, लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, एक वृद्ध मोटा पौराणिक चरित्र है, जो रेन्डियर पर सवार होता है, तथा समारोहों में, विशेष कर बच्‍चों के लिए एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह बच्‍चों को प्‍यार करता है तथा उनके लिए चाकलेट, उपहार व अन्‍य वांछित वस्‍तुएं लाता है, जिन्‍हें वह संभवत: रात के समय उनके जुराबों में रख देता है।

क्रिसमस के दौरान प्रभु की प्रशंसा में लोग कैरोल गाते हैं। वे प्‍यार व भाई चारे का संदेश देते हुए घर-घर जाते हैं।

क्रिसमस ट्री अपने वैभव के लिए पूरे विश्‍व में लोकप्रिय है। लोग अपने घरों को पेड़ों से सजाते हैं तथा हर कोने में मिसलटों को टांगते हैं। चर्च मास के बाद, लोग मित्रवत् रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं तथा दावत करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं व उपहार देते हैं। वे शांति व भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।

भारत में विशेषकर गोवा में कुछ लोकप्रिय चर्च हैं, जहां क्रिसमस बहुत जोश व उत्‍साह के साथ मनाया जाता है। इनमें से अधिकांश चर्च भारत में ब्रि‍टिश व पुर्तगाली शासन के दौरान स्‍‍थापित किए गए थे।

भारत के कुछ बड़े चर्चों मे सेंट जोसफ कैथेड्रिल, और आंध्र प्रदेश का मेढक चर्च, सेंट कै‍थेड्रल, चर्च आफ सेंट फ्रांसिस आफ आसीसि और गोवा का बैसिलिका व बोर्न जीसस, सेंट जांस चर्च इन विल्‍डरनेस और हिमाचल में क्राइस्‍ट चर्च, सांता क्‍लाज बैसिलिका चर्च, और केरल का सेंट फ्रासिस चर्च, होली क्राइस्‍ट चर्च तथा माउन्‍ट मेरी चर्च महाराष्‍ट्र में, तमिलनाडु में क्राइस्‍ट द किंग चर्च व वेलान्‍कन्‍नी चर्च, और आल सेंट्स चर्च व कानपुर मेमोरियल चर्च उत्‍तर प्रदेश में शामिल हैं।

क्रिसमस पर्व पर आप सभी को बधाई और शुभकामनाएं !!

साभार :bharat.gov.in

बुधवार, 31 अगस्त 2011

मुहब्बत व प्यार एवं कौमी मकजहती और खुशी का इजहार है ईद

यूं तो रमजान का पूरा महीना रहमत, मगफिरत और नर्क से छुटकारे का है, लेकिन जो लोग शराबी हैं, माता-पिता का कहना नहीं मानते हैं, आपस में लड़ते हैं और दिल में कीना रखते हैं, उनकी इस महीने में भी मगफिरत व बख्शिस नहीं होती है। हर्ष के मैदान में रोजेदारों को पुकार कर कहा जाता है कि उठो और जन्नत के आठ दरवाजों में से एक खास दरवाजे [रैय्यान] से जन्नत में दाखिल हो जाओ। यह वह दरवाजा है जिसमें मगफिरत व बख्शिस नहीं दिए जाने वाले प्रवेश नहीं कर सकते हैं।

रमजान वो महीना है जिसमें इंसानों की सारी मनुष्यता के लिए हिदायत बनाकर रौशनी हासिल करने के लिए कुरान नाजील फरमाया गया है। कुरान वो किताब है जिसके द्वारा इंसान सच और झूठ में, न्याय और अन्याय में, हक व बातिल में, कुर्फ में इमान में, इंसानियत और शैतानियत में फर्क करना सीखते हैं। रमजान के अंदर अल्लाह की तरफ से तमाम मुसलमानों के ऊपर रोजा फर्ज किया गया है। कुराण कहता है-ऐ इमान वालों, तुम पर जिस तरह रोजा फर्ज किया गया है ठीक उसी तरह उन्मतों पर भी रोजा फरमाया गया है ताकि तुम परहेजगार बन सको। रमजान का सबसे अहम अमल रोजा है। सूर्योदय के पूर्व से सूर्यास्त होने तक अपने बनाने वाले अल्लाह की एक इच्छा के अनुसार जायज खाने-पीने से और दिल की ख्वाइश से बच-बचाकर इंसान यह अभ्यास करता है कि वे पूरी जिंदगी में अपने अल्लाह के कहने के मुताबिक ही चले।

रमजान में रोजे के साथ-साथ रात में मुसलमान रोजाना तराबीह की बीस रकत नमाज में पूरा कुरान सुनते हैं। ये दुनिया भर की हर मज्जिद में अमल सुन्नत जानकर अदा की जाती है। इसकी फजीलत हदीस में आई है कि जो ईमान व ऐहतसाब के साथ ये नमाज तरबीह की अदा करेगा उसके पिछले तमाम गुनाहों को माफ कर दिया जाता है।

आमतौर पर आम मुसलमान ईद की पूर्व रात को चांद की रात के नाम से जानते हैं लेकिन कुरान में इस रात की बड़ी अहमियत होती है। हदीस के अनुसार इसका अर्थ है कि फरिश्ते आसमान पर इस रात को बातें करते हैं कि लैलतुल जाइजा [इनाम की रात] यानी पूरे रमजान जो अल्लाह के बंदों ने दिनों में रोजा रखकर और रातों में तराबीह पढ़कर अपने अल्लाह का हुकूम पूरा किया है, आज की रात उन्हें इनाम और बदले में अल्लाहताला उनकी बख्शिस व मगफिरत फरमाता है।

ईद अरबी शब्द है जिसका अर्थ है कि बार-बार लौटकर आने वाली खुशी। ईद में दो रकत नमाज वाजिब शुक्राने के तौर पर तमाम मुसलमान अदा करते हैं। वैसे मुसलमान से अल्लाहताला खुश हो जाते हैं और रमजान के दौरान अच्छी तरह नमाज अदा करने वाले रोजदार को अल्लाहताला से रजा व खुशी हासिल हो जाती है। इसी शुक्राने में ईद की नमाज अदा की जाती है। ईद वाले दिन सदक-ए-फितर हर साहिबे हैसियत मुसलमानों पर वाजिब है। अपने तमाम घर वालों की तरफ से पौने दो किलो गेहूं या उसकी कीमत के बराबर रकम गरीब, मिस्कीन, नादार में तकसीत कर दें ताकि हर मुसलमान खुशी और मुसर्रत के साथ ईद की खुशियों में अपना हिस्सा भी हासिल कर सकें। ईद के दिन आसमान में फरिश्ते आपस में बातें करते है कि अल्लाह ताला ने सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत के साथ क्या मामला किया? उन्हें जबाव मिलता है, मेहनत करने वाले को उनकी पूरी-पूरी मजदूरी दे दी जाती है जो अल्लाह की रजा व खुशनुदी की शक्ल में उस दिन लोगों को अता की जाती है।

पूरे महीने के रोजे के बाद अल्लाह का शुक्र अदा करने और अपनी अदा अजरत अल्लाहताला से लेने के लिए ईद की नमाज अदा की जाती है क्योंकि अल्लाह ईद के दिन सारे रोजदारों की मगफिरत फरमाकर निजात का परवाना अताए फरमाता है। ईद की नमाज हमारे रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत है और हमसब पर वाजिब है। इस दिन एक दूसरे से मुहब्बत व प्यार एवं कौमी मकजहती और खुशी का इजहार किया जाता है।

[प्रस्तुति-ब्रजेश नंदन माधुर्य]

सोमवार, 22 अगस्त 2011

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बधाइयाँ

श्री कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्स्व है। योगेश्वर कृष्ण के भगवद गीता के उपदेश अनादि काल से जनमानस के लिए जीवन दर्शन प्रस्तुत करते रहे हैं। जन्माष्टमी भारत में हीं नहीं बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं। श्रीकृष्ण ने अपना अवतार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को अत्याचारी कंस का विनाश करने के लिए मथुरा में लिया। चूंकि भगवान स्वयं इस दिन पृथ्वी पर अवतरित हुए थे अत: इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर मथुरा नगरी भक्ति के रंगों से सराबोर हो उठती है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन मौके पर भगवान कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए दूर दूर से श्रद्धालु आज के दिन मथुरापहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर मथुरा कृष्णमय हो जाता है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। ज्न्माष्टमी में स्त्री-पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है। और रासलीला का आयोजन होता है।

श्रीकृष्णजन्माष्टमीका व्रत सनातन-धर्मावलंबियों के लिए अनिवार्य माना गया है। इस दिन उपवास रखें तथा अन्न का सेवन न करें। समाज के सभी वर्ग भगवान श्रीकृष्ण के प्रादुर्भाव-महोत्सव को अपनी साम‌र्थ्य के अनुसार उत्साहपूर्वक मनाएं। गौतमीतंत्रमें यह निर्देश है-

उपवास: प्रकर्तव्योन भोक्तव्यंकदाचन।
कृष्णजन्मदिनेयस्तुभुड्क्तेसतुनराधम:।
निवसेन्नरकेघोरेयावदाभूतसम्प्लवम्॥

अमीर-गरीब सभी लोग यथाशक्ति-यथासंभव उपचारों से योगेश्वर कृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। जब तक उत्सव सम्पन्न न हो जाए तब तक भोजन कदापि न करें। जो वैष्णव कृष्णाष्टमी के दिन भोजन करता है, वह निश्चय ही नराधम है। उसे प्रलय होने तक घोर नरक में रहना पडता है।

धार्मिक गृहस्थोंके घर के पूजागृह तथा मंदिरों में श्रीकृष्ण-लीला की झांकियां सजाई जाती हैं। भगवान के श्रीविग्रहका शृंगार करके उसे झूला झुलाया जाता है। श्रद्धालु स्त्री-पुरुष मध्यरात्रि तक पूर्ण उपवास रखते हैं। अर्धरात्रिके समय शंख तथा घंटों के निनाद से श्रीकृष्ण-जन्मोत्सव मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्राम का दूध, दही, शहद, यमुनाजल आदि से अभिषेक होता है। तदोपरांत श्रीविग्रहका षोडशोपचार विधि से पूजन किया जाता है। कुछ लोग रात के बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक स्वरूप खीरा चीर कर बालगोपाल की आविर्भाव-लीला करते हैं।

धर्मग्रंथों में जन्माष्टमी की रात्रि में जागरण का विधान भी बताया गया है। कृष्णाष्टमी की रात में भगवान के नाम का संकीर्तन या उनके मंत्र

ॐनमोभगवतेवासुदेवायका जाप अथवा श्रीकृष्णावतारकी कथा का श्रवण करें। श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए रात भर जगने से उनका सामीप्य तथा अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। जन्मोत्सव के पश्चात घी की बत्ती, कपूर आदि से आरती करें तथा भगवान को भोग में निवेदित खाद्य पदार्थो को प्रसाद के रूप में वितरित करके अंत में स्वयं भी उसको ग्रहण करें।

आज जन्माष्टमी का व्रत करने वाले वैष्णव प्रात:काल नित्यकर्मो से निवृत्त हो जाने के बाद इस प्रकार संकल्प करें-

ॐविष्णुíवष्णुíवष्णु:अद्य शर्वरीनामसंवत्सरेसूर्येदक्षिणायनेवर्षतरैभाद्रपदमासेकृष्णपक्षेश्रीकृष्णजन्माष्टम्यांतिथौभौमवासरेअमुकनामाहं(अमुक की जगह अपना नाम बोलें) मम चतुर्वर्गसिद्धिद्वारा श्रीकृष्णदेवप्रीतयेजन्माष्टमीव्रताङ्गत्वेनश्रीकृष्णदेवस्ययथामिलितोपचारै:पूजनंकरिष्ये।

वैसे तो जन्माष्टमी के व्रत में पूरे दिन उपवास रखने का नियम है, परंतु इसमें असमर्थ फलाहार कर सकते हैं।

भविष्यपुराणके जन्माष्टमीव्रत-माहात्म्यमें यह कहा गया है कि जिस राष्ट्र या प्रदेश में यह व्रतोत्सवकिया जाता है, वहां पर प्राकृतिक प्रकोप या महामारी का ताण्डव नहीं होता। मेघ पर्याप्त वर्षा करते हैं तथा फसल खूब होती है। जनता सुख-समृद्धि प्राप्त करती है। इस व्रतराजके अनुष्ठान से सभी को परम श्रेय की प्राप्ति होती है। व्रतकत्र्ताभगवत्कृपाका भागी बनकर इस लोक में सब सुख भोगता है और अन्त में वैकुंठ जाता है। कृष्णाष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं। दुख-दरिद्रता से उद्धार होता है। गृहस्थोंको पूर्वोक्त द्वादशाक्षरमंत्र से दूसरे दिन प्रात:हवन करके व्रत का पारण करना चाहिए। जिन परिवारों में कलह-क्लेश के कारण अशांति का वातावरण हो, वहां घर के लोग जन्माष्टमी का व्रत करने के साथ इस मंत्र का अधिकाधिक जप करें-

कृष्णायवासुदेवायहरयेपरमात्मने।
प्रणतक्लेशनाशायगोविन्दायनमोनम:॥

उपर्युक्त मंत्र का नित्य जाप करते हुए सच्चिदानंदघनश्रीकृष्ण की आराधना करें। इससे परिवार में खुशियां वापस लौट आएंगी। घर में विवाद और विघटन दूर होगा।

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्तिहटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे।

व्रजमण्डलमें श्रीकृष्णाष्टमीके दूसरे दिन भाद्रपद-कृष्ण-नवमी में नंद-महोत्सव अर्थात् दधिकांदौ श्रीकृष्ण के जन्म लेने के उपलक्षमें बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। भगवान के श्रीविग्रहपर हल्दी, दही, घी, तेल, गुलाबजल, मक्खन, केसर, कपूर आदि चढाकर ब्रजवासीउसका परस्पर लेपन और छिडकाव करते हैं। वाद्ययंत्रोंसे मंगलध्वनिबजाई जाती है। भक्तजन मिठाई बांटते हैं। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है।

साभार : विकिपीडिया

!! कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को बधाइयाँ !!

सोमवार, 18 जुलाई 2011

सावन की बेला आ गई...

सावन मास की अपनी महत्ता है। सावन मास को श्रावण भी कहा जाता है। यह महीना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दौरान भक्ति, आराधना तथा प्रकृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। श्रावण मास त्रिदेव और पंच देवों में प्रधान भगवान शिव की भक्ति को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस मास में विधिपूर्वक शिव उपासना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यता है कि देव-दानव द्वारा किए गए समुद्र मंथन से निकले हलाहल यानि जहर का असर देव-दानव सहित पूरा जगत सहन नहीं कर पाया। तब सभी ने भगवान शंकर से प्रार्थना की। भगवान शंकर ने पूरे जगत की रक्षा और कल्याण के लिए उस जहर को पीना स्वीकार किया। विष पीकर शंकर नीलकंठ कहलाए। मान्यता है कि भगवान शंकर ने विष पान से हुई दाह की शांति के लिए समुद्र मंथन से ही निकले चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया। यह भी धार्मिक मान्यता है कि इस विष के प्रभाव को शांत करने के लिए भगवान शंकर ने गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया। इसी धारणा को आगे बढ़ाते हुए भगवान शंकराचार्य ने ज्योर्तिलिंग रामेश्वरम पर गंगा जल चढ़ाकर जगत को शिव के जलाभिषेक का महत्व बताया।


शास्त्रों के अनुसार भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकले विष का पान श्रावण मास में ही किया था। धार्मिक दृष्टि से यही कारण है कि इस मास में शिव आराधना का विशेष महत्व है। यह काल शिव भक्ति का पुण्य काल माना जाता है। शिव भक्तों द्वारा पूरी श्रद्धा, भक्ति और आस्था के साथ भगवान शिव की पूजा-अर्चना, अभिषेक, जलाभिषेक, बिल्वपत्र सहित अनेक प्रकार से की जाती है। इस काल में शिव की उपासना भौतिक सुखों को देने वाली होती है। व्यावहारिक रुप से देखें तो भगवान शंकर द्वारा विष पीकर कंठ में रखना और उससे हुई दाह के शमन के लिए गंगा और चंद्रमा को अपनी जटाओं और सिर पर धारण करना इस बात का प्रतीक है कि मानव को अपनी वाणी पर संयम रखना चाहिए। खास तौर पर कटु वचन से बचना चाहिए, जो कंठ से ही बाहर आते हैं और व्यावहारिक जीवन पर बुरा प्रभाव डालते हैं। किंतु कटु वचन पर संयम तभी हो सकता है, जब व्यक्ति मन को काबू में रखने के साथ ही बुद्धि और ज्ञान का सदुपयोग करे। शंकर की जटाओं में विराजित गंगा ज्ञान की सूचक है और चंद्रमा मन और विवेक का। गंगा और चंद्रमा को भगवान शंकर ने उसी स्थान पर रखा है जहां मानव का भी विचार केन्द्र यानि मस्तिष्क होता है।


सावन मास के दौरान ही कई प्रमुख त्योहार जैसे- हरियाली अमावस्या, नागपंचमी तथा रक्षा बंधन आदि भी आते हैं। सावन में प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है इसलिए यह भी कहा जाता कि यह महीना प्रकृति को समझने व उसके निकट जाने का है। सावन की रिमझिम बारिश और प्राकृतिक वातावरण बरबस में मन में उल्लास व उमंग भर देती है। सावन में ही महिलाएं कजरी-गायन कर खूब रंग बिखेरती हैं. सावन का महीना पूरी तरह से शिव तथा प्रकृति को समर्पित है. तो आप भी हर-हर महादेव के जयकारे के साथ गाइए- सावन आया झूम के !!

रविवार, 26 जून 2011

नशे को बोलें..ना-ना-ना

मादक पदार्थों व नशीली वस्तुओं के निवारण हेतु संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 7 दिसंबर, 1987 को प्रस्ताव संख्या 42/112 पारित कर हर वर्ष 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस मानाने का निर्णय लिया. यह एक तरफ लोगों में चेतना फैलाता है, वहीँ नशे के लती लोगों के उपचार की दिशा में भी सोचता है.इस वर्ष का विषय है- ''स्वास्थ्य के बारे में सोचें, नशे को न कहें." आजकी पोस्ट इसी विषय पर-
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मादक पदार्थों के नशे की लत आज के युवाओं में तेजी से फ़ैल रही है. कई बार फैशन की खातिर दोस्तों के उकसावे पर लिए गए ये मादक पदार्थ अक्सर जानलेवा होते हैं. कुछ बच्चे तो फेविकोल, तरल इरेज़र, पेट्रोल कि गंध और स्वाद से आकर्षित होते हैं और कई बार कम उम्र के बच्चे आयोडेक्स, वोलिनी जैसी दवाओं को सूंघकर इसका आनंद उठाते हैं. कुछ मामलों में इन्हें ब्रेड पर लगाकर खाने के भी उदहारण देखे गए हैं. मजाक-मजाक और जिज्ञासावश किये गए ये प्रयोग कब कोरेक्स, कोदेन, ऐल्प्राजोलम, अल्प्राक्स, कैनेबिस जैसे दवाओं को भी घेरे में ले लेते हैं, पता ही नहीं चलता. फिर स्कूल-कालेजों य पास पड़ोस में गलत संगति के दोस्तों के साथ ही गुटखा, सिगरेट, शराब, गांजा, भांग, अफीम और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं के सेवन की ओर अपने आप कदम बढ़ जाते हैं. पहले उन्हें मादक पदार्थ फ्री में उपलब्ध कराकर इसका लती बनाया जाता है और फिर लती बनने पर वे इसके लिए चोरी से लेकर अपराध तक करने को तैयार हो जाते हैं.नशे के लिए उपयोग में लाई जानी वाली सुइयाँ HIV का कारण भी बनती हैं, जो अंतत: एड्स का रूप धारण कर लेती हैं. कई बार तो बच्चे घर के ही सदस्यों से नशे की आदत सीखते हैं. उन्हें लगता है कि जो बड़े कर रहे हैं, वह ठीक है और फिर वे भी घर में ही चोरी आरंभ कर देते हैं. चिकित्सकीय आधार पर देखें तो अफीम, हेरोइन, चरस, कोकीन, तथा स्मैक जैसे मादक पदार्थों से व्यक्ति वास्तव में अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है एवं पागल तथा सुप्तावस्था में हो जाता है। ये ऐसे उत्तेजना लाने वाले पदार्थ है जिनकी लत के प्रभाव में व्यक्ति अपराध तक कर बैठता है। मामला सिर्फ स्वास्थ्य से नहीं अपितु अपराध से भी जुड़ा हुआ है. कहा भी गया है कि जीवन अनमोल है। नशे के सेवन से यह अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है।

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया में भारत हेरोइन का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है और ऐसा लगता है कि वह खुद भी अफीम पोस्त का उत्पादन करता है. गौरतलब है कि अफीम से ही हेरोइन बनती है. अपने देश के कुछ भागों में धड़ल्ले से अफीम की खेती की जाती है और पारंपरिक तौर पर इसके बीज 'पोस्तो' से सब्जी भी बने जाती है. पर जैसे-जैसे इसका उपयोग एक मादक पदार्थ के रूप में आरंभ हुआ, यह खतरनाक रूप अख्तियार करता गया. वर्ष 2001 के एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में भारतीय पुरुषों में अफीम सेवन की उच्च दर 12 से 60 साल की उम्र तक के लोगों में 0.7 प्रतिशत प्रति माह देखी गई. इसी प्रकार 2001 के राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार ही 12 से 60 वर्ष की पुरुष आबादी में भांग का सेवन करने वालों की दर महीने के हिसाब से तीन प्रतिशत मादक पदार्थ और अपराध मामलों से संबंधित संयुक्त राष्ट्र कार्यालय [यूएनओडीसी] की रिपोर्ट के ही अनुसार भारत में जिस अफीम को हेरोइन में तब्दील नहीं किया जाता उसका दो तिहाई हिस्सा पांच देशों में इस्तेमाल होता है। ईरान 42 प्रतिशत, अफगानिस्तान सात प्रतिशत, पाकिस्तान सात प्रतिशत, भारत छह प्रतिशत और रूस में इसका पांच प्रतिशत इस्तेमाल होता है। रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 2008 में 17 मीट्रिक टन हेरोइन की खपत की और वर्तमान में उसकी अफीम की खपत अनुमानत: 65 से 70 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है। कुल वैश्विक उपभोग का छह प्रतिशत भारत में होने का मतलब कि भारत में 1500 से 2000 हेक्टेयर में अफीम की अवैध खेती होती है, जो वाकई चिंताजनक है.

नशे से मुक्ति के लिए समय-समय पर सरकार और स्वयं सेवी संस्थाएं पहल करती रहती हैं. पर इसके लिए स्वयं व्यक्ति और परिवार जनों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है. अभिभावकों को अक्सर सुझाव दिया जाता है कि वे अपने बच्चों पर नजर रखें और उनके नए मित्र दिखाई देने, क्षणिक उत्तेजना या चिडचिडापन होने, जेब खर्च बढने, देर रात्रि घर लौटने, थकावट, बेचैनी, अर्द्धनिद्राग्रस्त रहने, बोझिल पलकें, आँखों में चमक व चेहरे पर भावशून्यता, आँखों की लाली छिपाने के लिए बराबर धूप के चश्मे का प्रयोग करते रहने, उल्टियाँ होने, निरोधक शक्ति कम हो जाने के कारण अक्सर बीमार रहने, परिवार के सदस्यों से दूर-दूर रहने, भूख न लगने व वजन के निरंतर गिरने, नींद न आने, खांसी के दौरे पड़ने, अल्पकालीन स्मृति में ह्रास, त्वचा पर चकते पड़ जाने, उंगलियों के पोरों पर जले का निशान होने, बाँहों पर सुई के निशान दिखाई देने, ड्रग न मिलने पर आंखों-नाक से पानी बहने-शरीर में दर्द-खांसी-उल्टी व बेचैनी होने, व्यक्तिगत सफाई पर ध्यान न देने, बाल-कपड़े अस्त व्यस्त रहने, नाखून बढे रहने, शौचालय में देर तक रहने, घरेलू सामानों के एक-एक कर गायब होते जाने आदत के तौर पर झूठ बोलने, तर्क-वितर्क करने, रात में उठकर सिगरेट पीने, मिठाईयों के प्रति आकर्षण बढ जाने, शैक्षिक उपलब्धियों में लगातार गिरावट आते जाने, स्कूल कालेज में उपस्थिति कम होते जाने, प्रायः जल्दबाजी में घर से बाहर चले जाने एवं कपडों पर सिगरेट के जले छिद्र दिखाई देने जैसे लक्षणों के दिखने पर सतर्क हो जाएँ. यह बच्चों के मादक-पदार्थों का व्यसनी होने की निशानी है. यही नहीं यदि उनके व्यक्तिगत सामान में अचानक माचिस,मोमबत्ती,सिगरेट का तम्बाकू, 3 इंच लम्बी शीशे की ट्यूब,एल्मूनियम फॉयल, सिरिंज, हल्का भूरा सफेद पाउडर मिलता है तो निश्चित जान लें कि वह ड्रग्स का शिकार है और तत्काल इस सम्बन्ध में कदम उठाने की जरुरत है.

मादक पदार्थों और नशा के सम्बन्ध में जागरूकता के लिए तमाम दिवस, मसलन- 31 मई को अंतर्राष्ट्रीय धूम्रपान निषेध दिवस, 26 जून को अंतर्राष्ट्रीय नशा व मादक पदार्थ निषेध दिवस, गाँधी जयंती पर 2 से 8 अक्टूबर मद्यनिषेध सप्ताह और 18दिसम्बर को मद्य निषेध दिवस के रूप में हर साल मनाया जाता है. मादक पदार्थों का नशा सिर्फ स्वास्थ्य को ही नुकसान नहीं पहुँचाता बल्कि सामाजिक-आर्थिक-पारिवारिक- मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी इसका प्रभाव परिलक्षित होता है. जरुरत इससे भागने की नहीं इसे समझने व इसके निवारण की है. मात्र दिवसों पर ही नहीं हर दिन इसके बारे में सोचने की जरुरत है अन्यथा देश की युवा पीढ़ी को यह दीमक की तरह खोखला कर देगा.

सोमवार, 20 जून 2011

शरणार्थियों के लिए कुछ करने का दिन : विश्व शरणार्थी दिवस

दुनिया के कई देश आज भी हिंसा की लपटों में जल रहे हैं. आंतरिक कलह और हिंसा का ऐसा मंजर है कि इन देशों के नागरिकों को दूसरे देशों में जाकर पनाह लेनी पड़ती है. बढ़ती आबादी और कम होते संसाधनों की वजह से कई गरीब देशों की जनता को पलायन करना पड़ रहा है. आज विश्व के कई देशों में पलायन का दौर बदस्तूर जारी है लेकिन अपना देश छोड़कर किसी और देश की पनाह लेना आसान काम नहीं है.

कोई भी इंसान अपने घर में किसी दूसरे को पसंद नहीं करता तो भला एक देश किसी दूसरे देश के नागरिकों को अपने देश में कैसे रहने दे? अपनेपन की कमी और विदेश नीतियों की कमी की वजह से रिफ्यूजी(Refugee) लोगों को कई तरह के अत्याचारों का सामना करना पड़ता है. किसी दूसरे के घर में पनाह लेने की रिफ्यूजियों(Refugee) को भारी कीमत चुकानी पड़ती है. कभी कभी तो जानमाल,रेप और हत्या तक हो जाती है और अक्सर रिफ्यूजी(Refugee) लोगों को जासूस समझ जेलों में ठूंस दिया जाता है. म्यांमार, मलेशिया, सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान, युनान, ट्युनिशिया आदि की जनता ने हाल ही में भारी संख्या में अपने देश से पलायन किया है लेकिन जिन जगह इन्होंने पनाह ली वह भी इनके लिए मुसीबत की जगह ही बनें.

भारी मात्रा में पलायन और कम संसाधनों की वजह से कई बार आश्रय देने वाले देश अतिरिक्त बोझ लेने से बचने के लिए रिफ्यूजियों को पनाह देने से कतराते हैं और जब रिफ्यूजी नहीं मानते तो उन पर जो अत्याचार होते हैं वह सभी मानवाधिकारों(Human Rights) की धज्जियां उड़ा देते हैं. हाल ही में कांगो(Democratic Republic of the Congo) नामक देश से हुए पलायन में 500,000 लोगों ने दूसरी जगह जाकर शरण ली लेकिन वहां पर भी आर्मी और कुछ असामाजिक तत्वों ने ऐसा घिनौना खेल खेला कि इंसानियत शर्मसार हो गई. एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां हजारों की तादाद में महिलाओं के साथ बलात्कार और हत्याओं की बात सामने आई.

उपरोक्त उस घटना और दर्द का अंशमात्र है जो रिफ्यूजियों के साथ होता है. संयुक्त राष्ट्र(United Nations) ने इस विषय की गंभीरता को समझते हुए हर वर्ष 20 जून को विश्व रिफ्यूजी दिवस(World Refugee Day) मनाने का निर्णय किया. 04 दिसम्बर 2000 को यह घोषणा की गई जिसे 20 जून, 2001 से लागू कर दिया गया. इस दिन को मनाने का मुख्य कारण लोगों में जागरुकता फैलानी है कि कोई भी इंसान “अमान्य” नहीं होता फिर चाहे वह किसी भी देश का हो. एकता और समंवय की भावना रखते हुए हमें सभी को मान्यता देनी चाहिए. संयुक्त राष्ट्र की संस्था युएनएचसीआर(United Nations High Commissioner for Refugees) रिफ्यूजी लोगों की सहायता करती है.

अगर विश्व ने जल्द ही इस तरफ अपना ध्यान आकर्षित नहीं किया तो हालात काबू से बाहर हो जाएंगे वैसे अभी भी हालात कोई खास अच्छे नहीं हैं. कागजी स्तर पर तो काफी काम हुआ है अब जरुरत है कुछ जमीनी स्तर पर काम करने की.

साभार : जागरण junction

मंगलवार, 31 मई 2011

मानवीय सभ्यता को लीलता तम्बाकू (विश्व तम्बाकू निषेध दिवस पर विशेष)

आज 31 मई को विश्व तम्बाकू निषेध दिवस है। मई माह की भी अपनी महिमा है. मजदूर दिवस से आरंभ होकर यह तम्बाकू निषेध दिवस पर ख़त्म हो जाता है. यह दिवस तो सरकारें हर साल मनाती हैं, यहाँ तक कि दुनिया के 170 राष्ट्रों ने व्यापक तम्बाकू नियंत्रण संधि पर हस्ताक्षर भी किये हैं पर वास्तव में इस सम्बन्ध में कोई ठोस पहल नहीं की जाती है. इसके पीछे राजस्व नुकसान से लेकर कार्पोरेट जगत के निहित तत्व तक शामिल हैं, जिनकी सरकारों में जबरदस्त घुसपैठ होती है. ऐसे में तम्बाकू के धुँए का यह जहर धीरे-धीरे सुरसा के मुँह की तरह पूरी दुनिया को निगलने पर आमदा है. गौरतलब है कि 450 ग्राम तम्बाकू में निकोटीन की मात्रा लगभग 22.8 ग्राम होती है। इसकी 6 ग्राम मात्रा से एक कुत्ता 3 मिनट में मर जाता है। तम्बाकू के प्रयोग से अनेक दंत रोग, मंदाग्नि रोग हो जाता है। आंखों की ज्योति कम हो सकती है तो दुष्प्रभाव रूप में व्यक्ति बहरा व अन्धा तक हो जाता है। तम्बाकू के निकोटीन से ब्लड प्रेशर बढ़ता है, रक्त संचार मंद पड़ जाता है।फेफड़ों की टीबी तो इसका सीधा प्रभाव देखा जा सकता है. यही नहीं तम्बाकू के सेवन से व्यक्ति नपुंसक भी हो सकता है। कहना गलत न होगा कि तम्बाकू का नियमित सेवन धीरे-धीरे व्यक्ति को मृत्यु के करीब ला देता है और वह असमय ही काल-कवलित हो जाता है.

अकेले भारत में हर साल लगभद आठ लाख मौतें तम्बाकू से होने वाली बीमारियों के कारण होती हैं।आज बच्चे-बूढ़े-जवान से लेकर पुरुष-नारी तक सभी वर्गों में तम्बाकू की लत देखी जा सकती है. कभी फैशन में तो,कभी नशे के चस्के में और कई बार थकान मिटाने या गम भुलाने की आड़ में भी इसे लिया जा रहा है. घर में बड़ों द्वारा लिए जा रहा तम्बाकू कब छोटों के पास पहुँच जाता है, पता ही नहीं चलता. दुर्भाग्यवश भारत में धर्म की आड में भी तम्बाकू का स्वाद लेने वालों की कमी नहीं है. गौरतलब है कि आयुर्वेद के चरक तथा सुश्रुत जैसे हजारों वर्ष पूर्व रचे गए ग्रन्थों में धूम्रपान का विधान है। वैसे, वहाँ पर उसका वर्णन औषधि के रूप में हुआ है, जैसे कहा गया है कि आम के सूखे पत्ते को चिलम जैसी किसी उपकरण में रखकर धुआं खींचने से गले के रोगों में आराम होता है। दमा तथा श्वास संबंधी रोगों में वासा (अडूसा) के सूखे पत्तों को चिलम में रखकर पीना एक प्रभावशाली उपाय माना गया है। आज भी ऐसे लोग मिल जायेंगे जो तम्बाकू को दवा बताते हैं. पवित्र तीर्थस्थलों पर धूनी पर बैठकर सुलफा, गांजा अथवा तम्बाकू के दम लगाने वालों तथाकथित बाबाओं की तो पूरी फ़ौज ही भरी पड़ी है. सरकारी दफ्तरों में तम्बाकू या धूम्रपान का सेवन करते पकड़े गए तमाम लोगों ने इसे अपने पक्ष में उपयोग किया है. पर ऐसे लोग उस पक्ष को भूल जाते हैं, जहाँ स्कन्दपुराण में कहा गया है कि-"स्वधर्म का आचरण करके जो पुण्य प्राप्त किया जाता है, वह धूम्रपान से नष्ट हो जाता है। इस कारण समस्त ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि को इसका सेवन कदापि नहीं करना चाहिए।''

इधर हाल के वर्षों में जिस तरह से इसने तेजी से महिलाओं को चंगुल में लेना आरंभ किया है, वह पूरी दुनिया के लिए चिंताजनक बन चुका है. अधिकतर महिलाओं का यह नशा उनकी अगली पीढ़ी में भी जा रहा है क्योंकि मातृत्व की स्थिति में इसका बुरा असर बच्चों पर पड़ना तय है. अब तो महिलाओं के लिए बाकायदा अलग से तम्बाकू उत्पाद भी बनने लगे हैं. स्कूल जाते लड़के-लड़कियां कम उम्र में ही इनका लुत्फ़ उठाने लगे हैं. उस पर से विज्ञापनों की चकाचौंध भी उन्हें इसका स्वाद लेने की तरफ अग्रसर करती है. फिल्मों-धारावाहिकों में जिस धड़ल्ले से नायक-नायिकाएं तम्बाकू वाले सिगरेट या सिगार को स्टाइल में पीते नजर आते हैं, वह नवयुवकों-नवयुवतियों पर गहरा असर डालता है. ऐसे में यह पता होते हुए भी कि यह स्वस्थ्य के अनुकूल नहीं है, यह स्टेट्स सिम्बल या फैशन का प्रतीक बन जाता है. प्रथम विश्व युद्ध के बाद घाटे की भरपाई और बदलते मूल्यों के चक्कर में पहली बार व्यावसायिक कंपनियों ने तम्बाकू उत्पादों की बिक्री के लिए महिलाओं का इस्तेमाल करना आरंभ किया. लारीवार्ड कंपनी ने पहल करते हुए पहली बार तम्बाकू उत्पादों के विज्ञापन हेतु सर्वप्रथम 1919 में महिलाओं के चित्रों का उपयोग किया। इसके अगले साल ही सिगरेट को नारी- स्वतंत्रता के प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया गया। 1927 के दौर में तो बाकायदा मार्लबोरो ब्रांड में सिगरेट को फैशन व दुबलेपन से जोड़ कर पेश किया गया. इसी के साथ ही कई नामी-गिरामी कंपनियों ने तमाम अभिनेत्रियों को तम्बाकू उत्पादों के कैम्पेन से जोड़ना आरंभ किया। बाद के वर्षों में जैसे -जैसे नारी-स्वातंत्र्य के नारे बुलंद होते गए, स्लिम होने को फैशन-स्टेटमेंट माना जाने लगा, इन कंपनियों ने भी इसे भुनाना आरंभ कर दिया. फिलिप मौरिस कंपनी ने 60 के दशक में बाकायदा वर्जिनिया स्लिम्स नाम से मार्केटिंग अभियान आरंभ किया,जिसकी पंच लाइन थी -'यू हैव कम ए लांग वे बेबी.' इसके बाद तो लगभग हर कंपनी ही तम्बाकू उत्पादों के प्रचार के लिए नारी माडलों व फ़िल्मी नायिकाओं का इस्तेमाल कर रही है. ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पूरा पिछला वर्ष तम्बाकू निषेध दिवस पर महिलाओं पर फोकस किया जाना महत्वपूर्ण व प्रासंगिक भी है. गौरतलब है कि भारत की कुल जितनी आबादी है, लगभग उतने ही लोग दुनिया में धूम्रपान करने वाले भी हैं, अर्थात 1 अरब से ज्यादा. इस 1 अरब में धूम्रपान करने वाली करीब 20 फीसदी महिलाएं भी शामिल हैं. आज महिलाओं में धूम्रपान का यह शौक भारत में भी बखूबी देखने को मिलता है. यह अक्सर या तो हाई सोसाईटी में या समाज के निचले तबके में बखूबी देखने को मिलता है. आंकड़े गवाह हैं कि भारत में करीब 1.4 फीसदी महिलायें धूम्रपान और करीब 8.4 फीसदी महिलायें खाने योग्य तम्बाकू का सेवन करती है। ऐसे में तम्बाकू सेवन से उनमें तमाम रोग व विकार उत्पन्न होते हैं. इनमें श्वांस सम्बन्धी बीमारी, फेफड़े का कैंसर, दिल का दौरा, निमोनिया, माहवारी सम्बंधित समस्याएं एवं प्रजनन विकार जैसी बीमारियाँ शामिल हैं. यही नहीं तम्बाकू का नियमित सेवन करने वाली महिलाओं में अक्सर पूर्व-प्रसव भी देखा गया हाई तथा पैदा होने वाले बच्चे औसत वजन से लगभग 400-500 ग्राम कम के पैदा होते हैं. इसके साथ ही तम्बाकू सेवन करने वाली महिलाओं में गर्भपात की दर भी सामान्य महिलाओं की तुलना में 95 फीसदी ज्यादा होती है।वाकई आज जरुरत है कि इस ओर गंभीर पहल की जाय. इन्हीं सबके चलते विश्व स्वास्थ्य संगठन अब तम्बाकू-उत्पादों का भ्रामक बाजारीकरण, जिसमें परोक्ष-अपरोक्ष रूप में तम्बाकू कंपनियों द्वारा प्रायोजित किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम पर प्रतिबन्ध लगाना भी शामिल है, के बारे में भी सोच रहा है. जानकर आश्चर्य होगा कि तम्बाकू कंपनियाँ हर साल विज्ञापन पर करीब दस अरब रूपये खर्च करतीं हैं. पर बेहतर होगा कि सरकारों और संगठनों की बजाय इस सम्बन्ध में अपने घर और उससे पहले खुद से शुरुआत की जाय ताकि तम्बाकू की यह विषबेल समय से पहले ही सभ्यताओं को न लील ले. क्योंकि Active रूप में जहाँ यह खुद के लिए घातक है, वही Passive रूप में हमारे परिवेश, परिवार, समाज और अंतत: पूरी सभ्यता को लीलने के लिए तैयार बैठी है !!

कृष्ण कुमार यादव

शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

अप्रैल फूल बनना है क्या

अप्रैल फूल दिवस पश्चिमी देशों में हर साल पहली अप्रैल को मनाया जाता है. विकिपीडिया पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार कभी-कभी ऑल फूल्स डे के रूप में जाना जाने वाला यह दिन, 1 अप्रैल एक आधिकारिक छुट्टी का दिन नहीं है लेकिन इसे व्यापक रूप से एक ऐसे दिन के रूप में जाना और मनाया जाता है जब एक दूसरे के साथ व्यावाहारिक मजाक और सामान्य तौर पर मूर्खतापूर्ण हरकतें की जाती हैं. इस दिन दोस्तों, परिजनों, शिक्षकों, पड़ोसियों, सहकर्मियों आदि के साथ अनेक प्रकार की शरारतपूर्ण हरकतें और अन्य व्यावहारिक मजाक किए जाते हैं, जिनका उद्देश्य होता है बेवकूफ और अनाड़ी लोगों को शर्मिंदा करना.

पारंपरिक तौर पर कुछ देशों जैसे न्यूजीलैंड, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका में इस तरह के मजाक केवल दोपहर तक ही किये जाते हैं, और अगर कोई दोपहर के बाद किसी तरह की कोशिश करता है तो उसे "अप्रैल फूल" कहा जाता है. ऐसा इसीलिये किया जाता है क्योंकि ब्रिटेन के अखबार जो अप्रैल फूल पर मुख्य पृष्ठ निकालते हैं वे ऐसा सिर्फ पहले (सुबह के) एडिशन के लिए ही करते हैं. इसके अलावा फ्रांस, आयरलैंड, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान रूस, नीदरलैंड, जर्मनी, ब्राजील, कनाडा और अमेरिका में जोक्स का सिलसिला दिन भर चलता रहता है. 1 अप्रैल और मूर्खता के बीच सबसे पहला दर्ज किया गया संबंध चॉसर के कैंटरबरी टेल्स (1392) में पाया जाता है.

रोम, मध्य यूरोप और हिंदू समुदाय में 20 मार्च से लेकर 5 अप्रैल तक नया साल मनाया जाता है। इस दौरान बसंत ऋतु होती है। जूनियल कैलेंडर ने एक अप्रैल से नया साल माना जोकि सन् 1582 तक मनाया गया। इसके बाद पोप ग्रेगी 13वें ने ग्रेगियन कैलेंडर बनाया। इसके अनुसार एक जनवरी को नया साल घोषित किया गया। कई देशों ने सन 1660 में ग्रेगीयन कैलेंडर स्वीकार कर लिया।

जर्मनी, दनिश और नार्वे में सन् 1700 और इंग्लैंड में 1759 में एक जनवरी को नए साल के रूप में स्वीकार किया गया। फ्रांस के लोगों को लगा की साल का पहला दिन बदलकर उन्हें मूर्ख बनाया गया है और पुराने कैलेंडर के नववर्ष को उन्होंने मूर्ख दिवस घोषित कर दिया।

अप्रैल फूल दिवस की एक बानगी देखें कि जीमेल (gmail) के 1 अप्रैल को लांच होने को एक मज़ाक समझा गया था, क्योंकि गूगल पारंपरिक तौर पर हर 1 अप्रैल को अप्रैल फूल्स डे के होक्स जारी करती है, और घोषित किया गया 1 जीबी का ऑनलाइन स्टोरेज उस समय मौजूदा ऑनलाइन ईमेल सेवा के लिए बहुत ही ज्यादा था .

अब तो पूरी दुनिया में ही अप्रैल-फूल का प्रचलन बढ़ चला है, सो भारत भी अछूता नहीं. हर कोई एक दिन पहले से ही तैयारी करने लगता है कि किसे-किसे मूर्ख बनाना है, और कैसे बनाना है.

फ़िलहाल अप्रैल फूल दिवस का लुत्फ़ उठायें, पर किसी कि भावनाएं आहत करने से बचें. बकौल हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. वीरेन्द्र यादव इस दिन हार्ट पेशेंट का खास ख्याल रखें। उन्होंने कहा कि कई बार गंभीर मजाक से भावनाओं के उतार-चढ़ाव के कारण कोरोनरी में अवरोध पैदा होता है। यदि कोरोनरी धमनियों में पहले से ही समस्या हो तो समस्या गंभीर हो जाती है। इस स्थिति में धमनियों के अंदर की चिकनी सतह खुरदरी हो जाती है। इससे वहां पर कोलेस्ट्रॉल सरीखा तत्व जमा होने लगता है। खून जमना शुरू हो जाता है। यह हृदय के लिए बहुत घातक साबित हो सकता है।किसी का मजाक उड़ाने की बजाय मजाक-मजाक में नई सीख सिखाएं तो इस दिन का भरपूर आनंद लिया जा सकता है.

मंगलवार, 8 मार्च 2011

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के 101 साल


अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरूआत 1900 के आरंभ में हुई थी। वर्ष 1908 में न्यूयार्क की एक कपड़ा मिल में काम करने वाली करीब 15 हजार महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर तनख्वाह और वोट का अधिकार देने के लिए प्रदर्शन किया था। इसी क्रम में 1909 में अमेरिका की ही सोशलिस्ट पार्टी ने पहली बार ''नेशनल वुमन-डे'' मनाया था। वर्ष 1910 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस हुई जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाने का फैसला किया गया और 1911 में पहली बार 19 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। इसे सशक्तिकरण का रूप देने हेतु ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैलियों में हिस्सा लिया. बाद में वर्ष 1913 में महिला दिवस की तारीख 8 मार्च कर दी गई। तब से हर 8 मार्च को विश्व भर में महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है.इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के 101 साल पूरे हो गए. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आप सभी को शुभकामनायें !!



मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

ऋतुराज का आगमन : वसंत पंचमी

वसंत पंचमी एक ओर जहां ऋतुराज के आगमन का दिन है, वहीं यह विद्या की देवी और वीणावादिनी सरस्वती की पूजा का भी दिन है। इस ऋतु में मन में उल्लास और मस्ती छा जाती है और उमंग भर देने वाले कई तरह के परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

इससे शरद ऋतु की विदाई के साथ ही पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है। प्रकृति नख से शिख तक सजी नजर आती है और तितलियां तथा भंवरे फूलों पर मंडराकर मस्ती का गुंजन गान करते दिखाई देते हैं। हर ओर मादकता का आलम रहता है। आयुर्वेद में वसंत को स्वास्थ्य के लिए हितकर माना गया है। हालांकि इस दौरान हवा में उड़ते पराग कणों से एलर्जी खासकर आंखों की एलर्जी से पीड़ित लोगों की समस्या बढ़ भी जाती है।

वसंत पंचमी को त्योहार के रूप में मनाए जाने के पीछे कई तरह की मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसीलिए इस दिन विद्या तथा संगीत की देवी की पूजा की जाती है। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने का चलन है, क्योंकि वसंत में सरसों पर आने वाले पीले फूलों से समूची धरती पीली नजर आती है।

वसंत पंचमी के पीछे एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन भागीरथ की तपस्या के चलते गंगा का अवतरण हुआ था, जिससे समूची धरती खुशहाल हो गई। माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पंचमी पर गंगा स्नान का काफी महत्व है।
पुराणों के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि वसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार सरस्वती की पूजा की थी और तब से वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा करने का विधान हो गया।

प्राचीन काल में वसंत पंचमी का दिन मदनोत्सव और वसंतोत्सव के रूप में मनाया जाता था। इस दिन स्त्रियां अपने पति की पूजा कामदेव के रूप में करती थीं। वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव हदय में प्रेम एवं आकर्षण का संचार किया था और तभी से यह दिन वसंतोत्सव तथा मदनोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। वसंत पंचमी इस बात का संकेत देती है कि धरती से अब शरद की विदाई हो चुकी है और ऐसी ऋतु आ चुकी है जो जीव जंतुओं तथा पेड़ पौधों में नवजीवन का संचार कर देगी।

वसंत में मादकता और कामुकता संबंधी कई तरह के शारीरिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं जिसका आयुर्वेद में व्यापक वर्णन है। महर्षियों और मनीषियों ने कहा है कि वसंत पंचमी को पूरी श्रद्धा से सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। बच्चों को इस दिन अक्षर ज्ञान कराना और बोलना सिखाना शुभ माना जाता है। वसंत पंचमी को श्री पंचमी भी कहा जाता है जो सुख, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने का परिचायक है। इस दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है जो मनुष्य के मन में भरे उल्लास को प्रकट करने का माध्यम है।

साभार : हिंदुस्तान / चित्र साभार : वेबदुनिया