भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। शायद यही कारण है कि एक समय किसी धर्म विशेष के त्यौहार माने जाने वाले पर्व आज सभी धर्मों के लोग आदर के साथ हँसी-खुशी मनाते हैं।कोस-कोस पर बदले भाषा, कोस-कोस पर बदले बानी -वाले भारतीय समाज में एक ही त्यौहार को मनाने के अन्दाज में स्थान परिवर्तन के साथ कुछ न कुछ परिवर्तन दिख ही जाता है। भारत त्यौहारों का देश है और हर त्यौहार कुछ न कुछ संदेश देता है-बन्धुत्व भावना, सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक तारतम्य, सभ्यताओं की खोज एवं अपने अतीत से जुडे़ रहने का सुखद अहसास। त्यौहार का मतलब ही होता है सारे गिले-शिकवे भूलकर एक नए सिरे से दिन का आगाज। चाहे वह ईद हो अथवा दीपावली, दोनों ही भाईचारे का संदेश देते हैं। दोनों को मनाने के तरीके अलग हो सकते हैं पर उद्देश्य अंततः मेल-जोल एवं बंधुत्व की भावना को बढ़ाना ही है। यहां तक कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के लिए त्यौहारों व मेलों का एक मंच के रूप में प्रयोग होता था।
भारतीय संस्कृति मे कोई भी उत्सव व्यक्तिगत नहीं वरन् सामाजिक होता है। यही कारण है कि उत्सवों को मनोरंजनपूर्ण व शिक्षाप्रद बनाने हेतु एवं सामाजिक सहयोग कायम करने हेतु इनके साथ संगीत, नृत्य, नाटक व अन्य लीलाओं का भी मंचन किया जाता है। यहाँ तक कि भरतमुनि ने भी नाट्यशास्त्र में लिखा है कि- ''देवता चंदन, फूल, अक्षत, इत्यादि से उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना कि संगीत नृत्य और नाटक से होते हैं."भारत विविधताओं का देश है, अतः उत्सवों और त्यौहारों को मनाने में भी इस विविधता के दर्शन होते हैं।
10 टिप्पणियां:
हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है...Behad sundar bat !!
भारतीय संस्कृति मे कोई भी उत्सव व्यक्तिगत नहीं वरन् सामाजिक होता है...Tabhi to hamari sanskriti sanatan hai.
Nice article on Festivals.
सुंदर ब्लॉग ...भारतीय संस्कृति में उत्सव और त्यौहारों की मूल भावना की ओर लौटने का खूबसूरत संदेश
त्यौहारों की मूल भावना को खूबसूरती से उकेरता लेख...के.के. जी को साधुवाद.
त्योहारों की भूमिका पर सशक्त पोस्ट.
बड़ा मनभावन चित्र है माँ का, चलिए इसी बहाने दर्शन हो गए....जय माता दी.
बड़े ही सुंदर रूप से आपने प्रस्तुत किया है दुर्गा पूजा के बारे में! मैं बंगाली हूँ इसलिए दुर्गा पूजा हमारा सबसे बड़ा त्यौहार है पर भारत में न रहने के कारण काफी समय हो गया दुर्गा पूजा नहीं देखा पर आपका पोस्ट पढ़कर बड़ा आनंद आया !
बड़ा ही सुन्दर ब्लॉग है.भारत विविधताओं का देश है, अतः उत्सवों और त्यौहारों को मनाने में भी इस विविधता के दर्शन होते हैं। आशा है की इस ब्लॉग के माध्यम से उस विविधता के दर्शन हो सकेंगें.
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