उत्सव के रंग...

भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। "उत्सव के रंग" ब्लॉग का उद्देश्य पर्व-त्यौहार, संस्कृति और उसके लोकरंजक तत्वों को पेश करने के साथ-साथ इनमें निहित जीवन-मूल्यों का अहसास कराना है. आज त्यौहारों की भावना गौड़ हो गई है, दिखावटीपन प्रमुख हो गया है. ऐसे में जरुरत है कि हम अपनी उत्सवी परंपरा की मूल भावनाओं की ओर लौटें. इन पारंपरिक त्यौहारों के अलावा आजकल हर दिन कोई न कोई 'डे' मनाया जाता है. हमारी कोशिश होगी कि ऐसे विशिष्ट दिवसों के बारे में भी इस ब्लॉग पर जानकारी दी जा सके. इस उत्सवी परंपरा में गद्य व पद्य दोनों तरह की रचनाएँ शामिल होंगीं !- कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव (ब्लॉग संयोजक)

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

यूँ आरंभ हुआ होलिका-दहन व होली

होली भारतीय समाज का एक प्रमुख त्यौहार है, जिसका लोग बेसब्री के साथ इंतजार करते हैं। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रूपों में होली मनाई जाती है। रबी की फसल की कटाई के बाद वसन्त पर्व में मादकता के अनुभवों के बीच मनाया जाने वाला यह पर्व उत्साह और उल्लास का परिचायक है। अबीर-गुलाल व रंगों के बीच भांग की मस्ती में फगुआ गाते इस दिन क्या बूढे व क्या बच्चे, सब एक ही रंग में रंगे नजर आते हैं।

नारद पुराण के अनुसार दैत्य राज हिरण्यकश्यप को यह घमंड था कि उससे श्रेष्ठ दुनिया में कोई नहीं, अत: लोगों को ईश्वर की पूजा करने की बजाय उसकी पूजा करनी चाहिए। पर उसका बेटा प्रहलाद जो कि विष्णु भक्त था, ने हिरण्यकश्यप की इच्छा के विरूद्ध ईश्वर की पूजा जारी रखी। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को प्रताड़ित करने हेतु कभी उसे ऊंचे पहाड़ों से गिरवा दिया, कभी जंगली जानवरों से भरे वन में अकेला छोड़ दिया पर प्रहलाद की ईश्वरीय आस्था टस से मस न हुयी और हर बार वह ईश्वर की कृपा से सुरक्षति बच निकला। अंतत: हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसके पास एक चमत्कारी चुनरी थी, जिसे ओढ़ने के बाद अग्नि में भस्म न होने का वरदान प्राप्त था, की गोद में प्रहलाद को चिता में बिठा दिया ताकि प्रहलाद भस्म हो जाय। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था, ईश्वरीय वरदान के गलत प्रयोग के चलते चुनरी ने उड़कर प्रहलाद को ढक लिया और होलिका जल कर राख हो गयी और प्रहलाद एक बार फिर ईश्वरीय कृपा से सकुशल बच निकला। दुष्ट होलिका की मृत्यु से प्रसन्न नगरवासियों ने उसकी राख को उड़ा-उड़ा कर खुशी का इजहार किया। मान्यता है कि आधुनिक होलिका दहन और उसके बाद अबीर-गुलाल को उड़ाकर खेले जाने वाली होली इसी पौराणिक घटना का स्मृति प्रतीक है।

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आभार इस उम्दा ज्ञानवर्धक पोस्ट के लिए.

आप एवं आपके परिवार को होली मुबारक. (पाखी को जरा ज्यादा रंग लगा देना हमारी तरफ से भी:))

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

आपको और आपके परिवार को होली की शुभकामनाएं। फाल्‍गुनी रंग आपके जीवन में हर खुशी भर दें। होली की सुन्दर जानकारी.

Bhanwar Singh ने कहा…

दिलचस्प जानकारी...होली की रंगकामनाएं स्‍वीकार हों !!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

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रंग-बिरंगी होली की बधाई.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

@ Udan Tashtari,

समीर अंकल जी, हमने आपकी तरफ से भी आपने गाल पर रंग लगा लिया. आपको होली पर बधाई.

Shahroz ने कहा…

!! होली की शुभकामनायें !! रंगकामनाएं स्‍वीकार हों !!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

Happy Holi.